जैव निर्माण में तीन ‘आर’ (घटाना, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण) की अवधारणा (Three R (reduce, reuse and recycle) concept for biomanufacturing to facilitate stronger bio economy)
जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास ने हमारी जीवनशैली को पर्यावरण अनुकूल और संसाधन-संरक्षणकारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके अंतर्गत ‘तीन आर’ – घटाना, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण – की अवधारणा बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। यह तीन आर न केवल जैव निर्माण (Biomanufacturing) में संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करती है, बल्कि समग्र रूप से एक सशक्त जैव-आर्थिकी (Bioeconomy) के निर्माण में भी सहायक होती है।
घटाना (Reduce): संसाधनों का न्यूनतम उपयोग
घटाना का अर्थ है किसी प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले संसाधनों की मात्रा को कम करना। जैव निर्माण में घटाना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल उत्पादन लागत को कम करता है, बल्कि पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को भी न्यूनतम करता है।
उदाहरण के लिए, जैविक निर्माण प्रक्रियाओं में ऊर्जा, जल और रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए नवीनतम जैव प्रौद्योगिकी समाधान विकसित किए जा रहे हैं। इससे उत्पादन प्रक्रियाओं में अवशेषों की मात्रा कम होती है और साथ ही कच्चे माल की मांग घटती है, जो संसाधनों के संरक्षण में सहायक होती है। इससे उत्पादों का पर्यावरणीय पदचिन्ह कम हो जाता है, जिससे स्थिरता प्राप्त की जा सकती है।
जैव प्रौद्योगिकी में घटाने की इस अवधारणा को लागू करना विशेष रूप से कृषि, औद्योगिक और स्वास्थ्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हो जाता है। उदाहरण के लिए, जैव प्रौद्योगिकी की मदद से उन्नत फसलों का विकास किया जा रहा है, जिन्हें कम मात्रा में कीटनाशकों और उर्वरकों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, घटाने की अवधारणा न केवल संसाधनों की बचत करती है बल्कि पर्यावरण के संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पुन: उपयोग (Reuse): संसाधनों का पुनः उपभोग
पुन: उपयोग का अर्थ है पहले से उपयोग किए गए संसाधनों का दोबारा उपयोग करना। जैव निर्माण में पुन: उपयोग की अवधारणा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल अपशिष्ट को कम करती है बल्कि उत्पादकता और लाभप्रदता को भी बढ़ाती है।
जैव प्रौद्योगिकी में पुन: उपयोग की कई विधियां प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए, जैव प्रौद्योगिकी से बने एंजाइम और माइक्रोब्स का पुनः उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जा सकता है, जिससे उत्पादन की दक्षता में सुधार होता है। जैविक अपशिष्टों का पुनः उपयोग खाद उत्पादन, जैव ईंधन उत्पादन या अन्य मूल्यवान जैव उत्पादों के निर्माण में किया जा सकता है। इसके अलावा, पुन: उपयोग की अवधारणा जल प्रबंधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैविक प्रक्रियाओं में पानी का पुनर्चक्रण किया जा सकता है, जिससे ताजे पानी की खपत में कमी आती है।
पुनर्चक्रण (Recycle): संसाधनों का पुनः प्रसंस्करण
पुनर्चक्रण का अर्थ है अपशिष्ट या प्रयुक्त वस्तुओं को नए उत्पादों में परिवर्तित करना। जैव निर्माण में पुनर्चक्रण की अवधारणा का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यह न केवल कच्चे माल की मांग को कम करती है, बल्कि अपशिष्ट प्रबंधन के लिए भी एक स्थायी समाधान प्रदान करती है।
निष्कर्ष
जैव निर्माण में ‘तीन आर’ – घटाना, पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण – की अवधारणा जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से एक सशक्त और स्थायी जैव-आर्थिकी के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह न केवल पर्यावरण के संरक्षण में सहायक है, बल्कि संसाधनों के कुशल उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से आर्थिक विकास को भी प्रोत्साहित करती है। जैव प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के साथ, तीन आर की अवधारणा भविष्य में जैव निर्माण और जैव-आर्थिकी के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगी।
Simran Bhatt
University/College name : Swami Rama Himalayan University, Jollygrant, Dehradun, Uttarakhand